बायसेग के माध्यम से राज्य के किसानों के साथ संवाद
पूर्वजों द्वारा प्रदान की गई उपजाऊ भूमि का संरक्षण नहीं करेंगे तो आने वाली पीढ़ी हमको माफ नहीं करेगी
जल, जमीन और पर्यावरण की रक्षा के साथ लोगों के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए प्राकृतिक कृषि आज समय की मांग
गुजरात के राज्यपालश्री आचार्य देवव्रत ने बायसेग के माध्यम से राज्यभर के किसानों को सम्बोधित करते हुए आज कहा कि रासायनिक खाद और जहरीले कीटनाशकों के अंधाधुंध उपयोग से जमीन बंजर होती जा रही है। ऐसे में प्राकृतिक कृषि अपनाकर धरती माता को जहरमुक्त बनाने के लिए किसान संकल्पबद्ध बनें। राज्यपालश्री ने कहा कि प्राकृतिक कृषि अपनाकर कृषि क्षेत्र में नयी क्रांति लाने का यह सही समय है। उन्होंने किसानों से ज्यादा से ज्यादा प्राकृतिक कृषि के साथ जुड़ने का अनुरोध किया।
राज्यपालश्री ने भास्कराचार्य इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस एप्लिकेशन एंड जियो इंफॉर्मेटिक्स बायसेग के माध्यम जिलों में स्थित किसान तालिम केन्द्रों, कृषि विज्ञान केन्द्रों, जिला पंचायतों, तालुका पंचायतों और ई-ग्राम सेंटर्स पर उपस्थित राज्यभर के किसानों को सम्बोधित करते हुए कहा कि रुपयों या सिक्कों से पेट नहीं भरता है बल्कि किसानों द्वारा खेतों में उत्पादित अनाज, सब्जियों आदि से पेट भरता है। इसका अर्थ यह हुआ कि किसान जीवन को पोषण देने का, जीवन बचाने का ईश्वरीय कार्य कर रहे हैं। ऐसे में हमारे पूर्वजों द्वारा हमको सौंपी गई उपजाऊ भूमि का संरक्षण नहीं करेंगे तो आने वाली पीढ़ी हमको कभी माफ नहीं करेगी।
भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने किसानों के उत्कर्ष के लिए और किसानों के सर्वांगीण विकास के लिए अनेक कदम उठाए हैं।
इतना ही नहीं, खेती और किसानों के सर्वांगीण विकास के लिए उन्होंने देशभर के किसानों से प्राकृतिक कृषि अपनाने का आह्वान किया है।
राज्यपालश्री ने हरित क्रांति के लिए रासायनिक कृषि को तत्कालीन समय की मांग बतलाते हुए कहा कि अब रासायनिक कृषि के दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि रासायनिक कृषि से जल, जमीन और पर्यावरण दूषित होता है। रासायनिक खाद और कीटनाशकों उपयोग से जमीन बंजर होती जा रही है और कृषि खर्च भी लगातार बढ़ता जा रहा है। उत्पादन घटता जा रहा है जिसके कारण किसानों की आर्थिक स्थिति कमजोर हो रही है। रासायनिक कृषि से उत्पादित प्रदूषित आहार खाने से लोगों के स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं सृजित हुई हैं। रासायनिक कृषि के मजबूत विकल्प के रूप में प्राकृतिक कृषि अपनाना आज समय की मांग है क्योंकि प्राकृतिक कृषि में खर्च नहीं के बराबर होता है और उत्पादन भी नहीं घटता है। प्राकृतिक कृषि से जल-जमीन और पर्यावरण के साथ ही लोगों के स्वास्थ्य की सुरक्षा होती है।
इस अवसर पर राज्यपालश्री ने प्राकृतिक कृषि के बीजामृत, जीवामृत, घनजीवामृत, आच्छादन, वाप्सा और मिश्रफसल के सिद्धांतों को समझाते हुए कहा कि इस खरीफ सीजन में में खेतों में बोयी गई फसल में देशी गाय के गोबर, गौमूत्र, बेसन, गुड़ में पानी मिलाकर बनाए गए मिश्रण से तैयार जीवामृत को पानी के साथ देने, जीवामृत के पानी में बने मिश्रण का हर पन्द्रह दिन में पौधों पर छिड़काव करने का भी किसानों से अनुरोध किया।
उन्होंने कहा कि रासायनिक खाद और कीटनाशकों के उपयोग से जमीन का ऑर्गेनिक कार्बन नष्ट होता है और जमीन अनुपजाऊ बनती है। जबकि प्राकृतिक कृषि में जमीन में सूक्ष्म जीवाणु और केंचुए जैसे मित्र जीवों की वृद्धि होने से जमीन के ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा में बढ़ोतरी होती है और जमीन उपजाऊ बनती है। राज्यपालश्री ने जैविक अर्थात ऑर्गेनिक कृषि और प्राकृतिक कृषि को बिल्कुल अलग बतलाते हुए कहा कि जंगल में वृक्षों और वनस्पतियों को किसी भी प्रकार का रासायनिक खाद या जंतुनाशक नहीं दिया जाता, इसके बावजूद उनकी वृद्धि कुदरती तौर पर होती है। अगर इसी नियम से खेतों में कृषि की जाए तो इसे ही प्राकृतिक कृषि कहते हैं।
गुजरात सरकार ने ज्यादा से ज्यादा किसानों को प्राकृतिक कृषि के साथ जोड़ने का अभियान शुरु किया है।
डांग जिले को देश का प्रथम प्राकृतिक कृषि सम्पन्न जिला घोषित किया गया है।
ऐसे में प्राकृतिक कृषि क्षेत्र में अन्य राज्य गुजरात का अनुसरण करें, ऐसी स्थिति का निर्माण करने का राज्यपालश्री ने गुजरात के किसानों से आह्वान किया।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में राज्य के पशुपालन सचिव श्री के.एम. भीमजियाणी ने राज्यपालश्री का स्वागत करते हुए किसानों की समृद्धि के लिए प्राकृतिक कृषि को आवश्यक बतलाया।
अंत में आत्मा परियोजना के डायरेक्टर श्री प्रकाश रबारी ने सबका आभार व्यक्त किया।
जिला- तहसील स्तर से प्रशासनिक अधिकारियों के साथ ही कृषि, बागायती और आत्मा परियोजना के अधिकारीगण तथा भारी संख्या में किसान भी इस कार्यक्रम में सहभागी हुए।