गांधीनगर। राज्यपाल श्री आचार्य देवव्रत जी, मुख्यमंत्री श्री भूपेंद्र पटेल और पूज्य भाई श्री रमेशभाई ओझा ने अग्रणी उद्योगपति और श्री रामकृष्ण एक्सपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक-अध्यक्ष श्री गोविंदभाई धोळकिया द्वारा लिखित आत्मकथा ‘डायमंड्स फोरएवर, सो आर मोरल्स’ (हीरा सदा के लिए है, उसी तरह नैतिकता भी) के गुजराती संस्करण का विमोचन किया। गांधीनगर स्थित राजभवन में आयोजित गरिमामय कार्यक्रम में श्री गोविंदभाई धोळकिया, श्री अरजणभाई धोळकिया सहित उद्योग, साहित्य और राजनीतिक क्षेत्र के अग्रणी उपस्थित रहे।
राज्यपाल श्री आचार्य देवव्रत जी ने कहा कि मनुष्य ने प्रकृति सहित सभी क्षेत्रों में विजय प्राप्त कर ली है, लेकिन वह अपने काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार पर विजय प्राप्त नहीं कर पाया है। गांव में पशुपालन और खेती कर और गांव के गली विश्वविद्यालय में अध्ययन कर श्री गोविंदभाई धोळकिया ने अपने साधारण नियमों को नैतिकता में बदल दिया है। वे परिश्रम और ईमानदारी से ‘डायमंड किंग’ बने हैं।
उन्होंने कहा कि भौतिकता के साथ अध्यात्म का अद्भुत सामंजस्य रखने वाले श्री गोविंदभाई ने सच्चे कर्मयोगी के तौर पर परिवार, गुजरात और देश का गौरव बढ़ाया है।
राज्यपाल ने कहा कि परोपकार और प्रेरणा में गुजराती लोग आगे हैं। उन्होंने गुजरात की धरती की इस अनूठी विशेषता को रेखांकित करते हुए कहा कि “गुजरात के सपूत प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी आज दुनिया के सर्वोच्च लोकप्रिय नेता हैं। श्री गोविंदभाई धोळकिया और श्री धीरूभाई अंबानी जैसे नररत्न आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं और स्वामी दयानंद सरस्वती जी, जिनसे मुझे प्रेरणा मिली है, उनका जन्म भी गुजरात में हुआ था। गुजरात की धरती को नमन है।”
राज्यपाल श्री आचार्य देवव्रत जी ने इस अवसर पर कहा कि जो मन में हो, वही वाणी में हो और जो वाणी में हो, वही कर्म बन जाए; इसी में व्यक्ति की पूर्णता है। श्री गोविंदभाई धोळकिया नैतिकतापूर्ण आध्यात्मिक जीवन जी रहे हैं, मूल्यों और आदर्शों के साथ व्यवसाय कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सात्विक एवं निर्व्यसनी जीवनशैली अपनाने वाले श्री गोविंदभाई धोळकिया की आत्मकथा युवाओं और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेगी।
राज्यपाल श्री आचार्य देवव्रत जी ने कहा कि धन अपने साथ बुराइयां लाता है, लेकिन श्री गोविंदभाई धोळकिया ने धन को धर्म, पुण्य, परोपकार, भलाई और दूसरों की गरीबी दूर करने के काम में लगाया है। उन्होंने कहा कि धोळकिया परिवार वर्तमान समय में पारिवारिक एकता की अद्भुत मिसाल पेश कर रहा है।
मुख्यमंत्री श्री भूपेंद्र पटेल ने पुस्तक विमोचन के अवसर पर श्री गोविंदभाई धोळकिया को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि श्री गोविंदभाई धोळकिया जैसे सफल उद्योगपति जब अपने 40 से 50 वर्ष के अनुभव को एक पुस्तक में समाहित करते हैं, तब निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि ‘डायमंड्स फोरएवर, सो आर मोरल्स’ पुस्तक आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा और नैतिकता का अविरत स्रोत बनेगी।
श्री पटेल ने कहा कि इस पुस्तक से युवा पीढ़ी को यह सीखने को मिलेगा कि कैसे संघर्ष करते हुए शून्य से सृजन किया जाए और सफल होने के बाद सहजता एवं नैतिकता को बरकरार रखा जाए।
मुख्यमंत्री ने कर्म और उसके फल के बारे में श्री गोविंदभाई द्वारा कही गई बात की सराहना करते हुए कहा कि कर्म निरंतर चलने वाली एक प्रक्रिया है, और कोई भी मनुष्य अपने कर्मो से ही महान बनता है। जीवन में किया गया कोई भी कर्म अपना फल दिए बिना नष्ट नहीं होता।
उन्होंने कहा कि गोविंदभाई प्रारंभ से ही भगवान पर श्रद्धा रखकर और मेहनत करते हुए कर्म के रास्ते पर आगे बढ़ते गए और सफलता तक पहुंचे। आने वाली पीढ़ियों को भी उनसे यही सीखना है। उन्होंने कहा कि यदि हम अपनी मेहनत पर भरोसा रख कर्म और संघर्ष करते-करते सही मार्ग पर आगे बढ़ें, तो हमें सफल होने से कोई नहीं रोक सकता।
मुख्यमंत्री ने कहा कि स्वयं सफल होना और सभी को साथ लेकर सफल होना; इन दोनों बातों में बहुत बड़ा अंतर है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने हमेशा सभी को साथ लेकर आगे बढ़ने के लिए ही ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’ मंत्र दिया है। इसी तरह श्री गोविंदभाई भी सभी को साथ लेकर चलने वाले इनसान हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि श्री गोविंदभाई की जीवन रूपी माला के अनुभव रूपी प्रत्येक मोती से भावी पीढ़ी प्रेरणा ले सके; उस दिशा में यह पुस्तक एक महत्वपूर्ण कड़ी साबित होगी।
भागवत कथाकार पूज्य भाई श्री रमेशभाई ओझा ने कहा कि अनुभव जिसकी आत्मा होती है और जो सत्य के साथ जुड़ा हुआ हो, वह शब्द ‘शब्द ब्रह्म’ कहलाता है, और यदि ऐसा शब्द विचारपूर्वक प्रयुक्त होता है, तो वह कामधेनु जैसा इच्छित फल देने का कार्य करता है। श्री गोविंदभाई ने इसी तरह अपने जीवन के अच्छे-बुरे अनुभवों को निरंतरता के साथ शब्दों में पिरोकर भावी पीढ़ी के लिए इस पुस्तक में शामिल किया है।
उन्होंने कहा कि आज के युवा जो स्वप्न देखते हैं, उसे साकार करने के लिए जो मेहनत और संघर्ष करते हैं, वैसे युवाओं को इस पुस्तक के शब्द कुछ सीखने की प्रेरणा प्रदान करेंगे।
श्री ओझा ने आगे कहा कि हीरा आपको धनवान बना सकता है, लेकिन जीवन के मूल्य आपको एक बेहतर इनसान बनाते हैं। गोविंदभाई अपनी सफलता के बाद भी कभी मूल्यों से डिगे नहीं है, क्योंकि उनका मानना है कि जीवन के मूल्यों को दरकिनार कर सफल होने वाले व्यक्तियों की सफलता टिकाऊ नहीं होती है।
उन्होंने कहा कि जिस तरह से भगवान ने स्वयं भागवत में मूल्यों के सिंचन के लिए प्रह्लाद एवं ध्रुव जैसे चरित्रों का गान किया है, उसी तरह आज की युवा पीढ़ी में नैतिकता एवं मूल्यों का सिंचन करने के लिए गोविंदभाई ने इस पुस्तक में अपने अनुभवों को बहुत ही अच्छी तरह से मुद्रित किया है। सफल व्यक्ति का जीवन चरित्र पढ़ने से जीवन में सकारात्मक बदलाव आता है। ऐसी पुस्तकों से मिलने वाली प्रसाद रूपी प्रेरणा सफलता की दिशा में आगे बढ़ने का मार्ग है, और इसलिए ही ऐसे प्रकाशन का स्वागत किया जाना चाहिए।
श्री गोविंदभाई धोळकिया ने अपने उद्बोधन में कहा कि, “अपने मुख से अपनी तारीफ करना मृत्यु के समान है। मैंने अपनी आत्मकथा में कहीं भी आत्मश्लाघा नहीं की है।”
उन्होंने कहा कि “कर्ता, अकर्ता और अन्यथा कर्ता ईश्वर ही है। मैं भगवान को मूल में रखकर ही अपनी प्रत्येक प्रवृत्ति करता हूं। कार्य भक्ति स्वरूप है, जरूरतमंद व्यक्तियों की मदद कर भगवान का कार्य करने का एहसास होता है। मैं पिछले 40 वर्षों से प्रतिदिन अपनी दैनंदिनी लिखता आ रहा हूं, मैंने अपने निजी मित्र और ‘अगनपंख’ के लेखक श्री अरुण तिवारी के आग्रह पर उस दैनंदिनी का अंग्रेजी अनुवाद करवाकर उन्हें भेजा। श्री अरुण तिवारी ने मेरी उस दैनंदिनी से मेरी आत्मकथा सर्वप्रथम अंग्रेजी भाषा में लिखी। आज ‘डायमंड्स फोरएवर, सो आर मोरल्स’ के गुजराती संस्करण का विमोचन हो रहा है, तब विशेष मेहमानों एवं गणमान्य लोगों की उपस्थिति से मैं अपने जीवन की सार्थकता की अनुभूति कर रहा हूं।”
श्री गोविंदभाई धोळकिया के पुत्र श्री श्रेयांशभाई धोळकिया ने स्वागत संबोधन में कहा कि, “मेरे पिताजी श्री गोविंदभाई धोळकिया का मूल मंत्र है ‘संपत्ति और संतति प्रारब्ध के अनुसार ही मिलती हैं। इसके लिए जरूरत प्रयास करने की है, पाप करने की नहीं।’ उन्होंने कहा कि जीवन में कभी शॉर्टकट नहीं अपनानाना चाहिए, लंबा मार्ग कठिन हो सकता है, लेकिन वह स्थायी होगा।”
उन्होंने कहा कि, “पिताजी ने यह आत्मकथा परिवारजनों के अति आग्रह के कारण लिखी है। यह आत्मकथा हमारे लिए, युवाओं के लिए और आने वाली पीढ़ियों के लिए गीता के समान है।”
अंत में श्री अर्पितभाई नारोला ने धन्यवाद ज्ञापित किया। समारोह का संचालन कवि श्री अंकित त्रिवेदी ने किया।
विमोचन वंदिता के अवसर पर पूर्व मुख्यमंत्री श्री विजय रूपाणी, मंत्री श्री राघवजीभाई पटेल, श्री ऋषिकेशभाई पटेल, श्री प्रफुलभाई पानसेरिया, श्री मुकेशभाई पटेल, पूर्व मंत्री श्री भूपेंद्रसिंह चूड़ासमा, मुख्य सूचना आयुक्त श्री अमृतभाई पटेल, मुख्यमंत्री के मुख्य प्रधान सचिव श्री के. कैलाशनाथन, पद्मश्री सवजीभाई धोळकिया, श्री लवजीभाई बादशाह, वरिष्ठ लेखक और अग्रणी श्री पी. के. लहरी, श्री कुमारपाळ देसाई, श्री भाग्येश झा, श्री भद्रायु वच्छराजानी, श्री जय वसावडा, प्रकाशक आर. आर. शेठ के श्री चिंतनभाई शेठ सहित अग्रणी उद्योगपति, वरिष्ठ अधिकारीगण एवं परिवारजन उपस्थित रहे।
नैतिकता और डायमंड के बीच समानता दिखाने वाली आत्मकथा का शीर्षक स्वयं पुस्तक के सारांश को प्रतिबिंबित करता है। लंदन, सूरत, दिल्ली, हैदराबाद और कोच्चि में पुस्तक के अंग्रेजी संस्करण के लॉन्च होने के बाद से ही, दुनिया भर से इस पुस्तक को सकारात्मक प्रतिक्रिया मिल रही है। आत्मकथा के अंग्रेजी संस्करण की 11,000 से अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं।